Jharkhand News: पश्चिम बंगाल की राजनीति इन दिनों बेहद गर्म हो चुकी है। चुनावी तैयारियों के बीच मतदाता सूची को लेकर सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला लगातार तेज होता जा रहा है। इसी माहौल में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का बयान और भी हलचल मचा रहा है। उन्होंने विपक्षी दलों पर आरोप लगाया कि वे भारत के मतदाताओं को छोड़कर बांग्लादेशी मतदाताओं पर भरोसा कर रहे हैं। यह आरोप राजनीतिक माहौल को और अधिक विवादित बना रहा है और राज्य में बहस का नया दौर शुरू हो गया है।
निशिकांत दुबे का तीखा आरोप
निशिकांत दुबे ने दावा किया कि विपक्षी दल हमेशा से बांग्लादेशी मतदाताओं के सहारे सरकार बनाने का प्रयास करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन दलों को भारत की जनता के वोट पर भरोसा नहीं रहा। उनके इस बयान ने राजनीतिक तापमान और बढ़ा दिया है। दुबे का कहना है कि राज्य में असल मुद्दों से ध्यान हटाकर ऐसे मतदाता जो भारतीय नागरिक नहीं हैं उन्हें साधने की कोशिश की जा रही है। उनके अनुसार यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
SIR प्रक्रिया और नई बहस
दुबे ने विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR पर भी बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया राजीव गांधी की देन है और इसका मूल उद्देश्य मतदाता सूची को सही और निष्पक्ष बनाना था। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कहा कि वे अपने पिता की नीतियों को समझ नहीं पा रहे हैं। दुबे का कहना है कि राहुल गांधी को चाहिए कि वे SIR प्रक्रिया को गंभीरता से पढ़ें और समझें कि इस प्रणाली का उद्देश्य क्या था। यह टिप्पणी कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक तकरार को और तेज कर रही है।
मतदाता सूची पर छिड़ा विवाद
इस समय पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची को लेकर भारी विवाद चल रहा है। सत्तारूढ़ दल का आरोप है कि भाजपा इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रही है। वहीं भाजपा का दावा है कि बड़ी संख्या में अवैध मतदाताओं को सूची में शामिल किया गया है। SIR प्रक्रिया के दौरान किए जा रहे बदलाव और संशोधनों को लेकर दोनों पक्ष एक दूसरे पर कानून के दुरुपयोग का आरोप लगा रहे हैं। इस विवाद ने आम लोगों में भी भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है और चुनावी प्रक्रिया पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं।
राजनीतिक तनाव और आगे की राह
बंगाल की राजनीति में यह नया विवाद चुनावों से पहले बड़ा मुद्दा बन गया है। SIR के नाम पर चल रही राजनीतिक लड़ाई अभी और लंबी चलने की संभावना है। भाजपा और विपक्ष दोनों ही इसे अपनी-अपनी राजनीति के हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में राज्य की जनता भी यह समझने की कोशिश कर रही है कि वास्तव में सत्य क्या है। अब देखने वाली बात यह होगी कि चुनाव आयोग इस पूरे मामले में क्या कदम उठाता है और राजनीतिक दल इस विवाद को किस दिशा में ले जाते हैं।

